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नमस्कार! ( Greetings! )

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         नमस्ते या नमस्कार करने की मुद्रा। नमस्ते या नमस्कार , भारतीयों के बीच अभिनन्दन करने का प्रयुक्त शब्द है जिसका अर्थ है तुम्हारे लिए प्रणाम।  Namaste or Namaskar Gesture. Namaste or Namaskar is common among Indians to greet (to welcome as well as to bid farewell) each other (verbally with the gesture or only verbally) and it means I salute the divine in you.  

तुलसीदास

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तुलसीदास के जीवन की ऐतिहासिक घटनाएं तुलसीदास के जीवन की कुछ घटनाएं एवं तिथियां भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। कवि के जीवन-वृत्त और महिमामय व्यक्तित्व पर उनसे प्रकाश पड़ता है। यज्ञोपवीत मूल गोसाईं चरित के अनुसार तुलसीदास का यज्ञोपवीत माघ शुक्ला पंचमी सं० १५६१ में हुआ - पन्द्रह सै इकसठ माघसुदी। तिथि पंचमि औ भृगुवार उदी । सरजू तट विप्रन जग्य किए। द्विज बालक कहं उपबीत किए ।। कवि के माता - पिता की मृत्यु कवि के बाल्यकाल में ही हो गई थी। विवाह जनश्रुतियों एवं रामायणियों के विश्वास के अनुसार तुलसीदास विरक्त होने के पूर्व भी कथा-वाचन करते थे। युवक कथावाचक की विलक्षण प्रतिभा और दिव्य भगवद्भक्ति से प्रभावित होकर रत्नावली के पिता पं० दीन बंधु पाठक ने एक दिन, कथा के अन्त में, श्रोताओं के विदा हो जाने पर, अपनी बारह वर्षीया कन्या उसके चरणों में सौंप दी। मूल गोसाईं चरित के अनुसार रत्नावली के साथ युवक तुलसी का यह वैवाहिक सूत्र सं० १५८३ की ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी, दिन गुरुवार को जुड़ा था - पंद्रह सै पार तिरासी विषै । सुभ जेठ सुदी गुरु तेरसि पै । अधिराति लगै जु फिरै भंवरी । दुलहा दुलही की परी पं

कबीर

महात्मा कबीर का जन्म-काल महात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था। भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्थाएँ सोचनीय हो गयी थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धमार्ंधता से जनता त्राहि- त्राहि कर रही थी और दूसरी तरफ हिंदूओं के कर्मकांडों, विधानों एवं पाखंडों से धर्म- बल का ह्रास हो रहा था। जनता के भीतर भक्ति- भावनाओं का सम्यक प्रचार नहीं हो रहा था। सिद्धों के पाखंडपूर्ण वचन, समाज में वासना को प्रश्रय दे रहे थे। नाथपंथियों के अलखनिरंजन में लोगों का ऋदय रम नहीं रहा था। ज्ञान और भक्ति दोनों तत्व केवल ऊपर के कुछ धनी- मनी, पढ़े- लिखे की बपौती के रुप में दिखाई दे रहा था। ऐसे नाजुक समय में एक बड़े एवं भारी समन्वयकारी महात्मा की आवश्यकता समाज को थी, जो राम और रहीम के नाम पर आज्ञानतावश लड़ने वाले लोगों को सच्चा रास्ता दिखा सके। ऐसे ही संघर्ष के समय में, मस्तमौला कबीर का प्रार्दुभाव हुआ। जन्म महात्मा कबीर के जन्म के विषय में भिन्न- भिन्न मत हैं। "कबीर कसौटी' में इनका जन्म संवत् १४५५ दिया गया है। ""भक्ति- सुधा- बिंदु-

सूरदास

जन्म सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। "साहित्य लहरी' सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है - मुनि पुनि के रस लेख । दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख ।। इसका अर्थ विद्वानों ने संवत् १६०७ वि० माना है, अतएव "साहित्य लहरी' का रचना काल संवत् १६०७ वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाण मिलता है कि सूर के गुरु श्री बल्लभाचार्य थे - सूरदास का जन्म सं० १५३५ वि० के लगभग ठहरता है, क्योंकि बल्लभ सम्प्रदाय में ऐसी मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उक्त संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् १५३५ वि० समीचीन जान पड़ती है। अनेक प्रमाणों के आधार पर उनका मृत्यु संवत् १६२० से १६४८ वि० के मध्य स्वीकार किया जाता है। रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् १५४० वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् १६२० वि० के आसपास माना जाता है। श्री गुरु बल्लभ तत्त्व सुनायो लीला भेद बतायो। सूरदास की आयु "सूरसारा

वाच्य

वाच्य वाच्य-क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वाक्य में क्रिया द्वारा संपादित विधान का विषय कर्ता है, कर्म है, अथवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं। वाच्य के तीन प्रकार हैं- 1. कर्तृवाच्य। 2. कर्मवाच्य। 3. भाववाच्य। 1.कर्तृवाच्य- क्रिया के जिस रूप से वाक्य के उद्देश्य (क्रिया के कर्ता) का बोध हो, वह कर्तृवाच्य कहलाता है। इसमें लिंग एवं वचन प्रायः कर्ता के अनुसार होते हैं। जैसे- 1.बच्चा खेलता है। 2.घोड़ा भागता है। इन वाक्यों में ‘बच्चा’, ‘घोड़ा’ कर्ता हैं तथा वाक्यों में कर्ता की ही प्रधानता है। अतः ‘खेलता है’, ‘भागता है’ ये कर्तृवाच्य हैं। 2.कर्मवाच्य- क्रिया के जिस रूप से वाक्य का उद्देश्य ‘कर्म’ प्रधान हो उसे कर्मवाच्य कहते हैं। जैसे- 1.भारत-पाक युद्ध में सहस्रों सैनिक मारे गए। 2.छात्रों द्वारा नाटक प्रस्तुत किया जा रहा है। 3.पुस्तक मेरे द्वारा पढ़ी गई। 4.बच्चों के द्वारा निबंध पढ़े गए। इन वाक्यों में क्रियाओं में ‘कर्म’ की प्रधानता दर्शाई गई है। उनकी रूप-रचना भी कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हुई है। क्रिया के ऐसे रूप ‘कर्मवाच्य’ कहलाते हैं। 3.भाववाच्य-क्रिया के जि

काल

काल क्रिया के जिस रूप से कार्य संपन्न होने का समय (काल) ज्ञात हो वह काल कहलाता है। काल के निम्नलिखित तीन भेद हैं- 1. भूतकाल। 2. वर्तमानकाल। 3. भविष्यकाल। 1. भूतकाल क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय (अतीत) में कार्य संपन्न होने का बोध हो वह भूतकाल कहलाता है। जैसे- (1) बच्चा गया। (2) बच्चा गया है। (3) बच्चा जा चुका था। ये सब भूतकाल की क्रियाएँ हैं, क्योंकि ‘गया’, ‘गया है’, ‘जा चुका था’, क्रियाएँ भूतकाल का बोध कराती है। भूतकाल के निम्नलिखित छह भेद हैं- 1. सामान्य भूत। 2. आसन्न भूत। 3. अपूर्ण भूत। 4. पूर्ण भूत। 5. संदिग्ध भूत। 6. हेतुहेतुमद भूत। 1.सामान्य भूत- क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय में कार्य के होने का बोध हो किन्तु ठीक समय का ज्ञान न हो, वहाँ सामान्य भूत होता है। जैसे- (1) बच्चा गया। (2) श्याम ने पत्र लिखा। (3) कमल आया। 2.आसन्न भूत- क्रिया के जिस रूप से अभी-अभी निकट भूतकाल में क्रिया का होना प्रकट हो, वहाँ आसन्न भूत होता है। जैसे- (1) बच्चा आया है। (2) श्यान ने पत्र लिखा है। (3) कमल गया है। 3.अपूर्ण भूत- क्रिया के जिस रूप से कार्य का होना बीते समय में

क्रिया

क्रिया क्रिया- जिस शब्द अथवा शब्द-समूह के द्वारा किसी कार्य के होने अथवा करने का बोध हो उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- (1) गीता नाच रही है। (2) बच्चा दूध पी रहा है। (3) राकेश कॉलेज जा रहा है। (4) गौरव बुद्धिमान है। (5) शिवाजी बहुत वीर थे। इनमें ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ शब्द कार्य-व्यापार का बोध करा रहे हैं। जबकि ‘है’, ‘थे’ शब्द होने का। इन सभी से किसी कार्य के करने अथवा होने का बोध हो रहा है। अतः ये क्रियाएँ हैं। धातु क्रिया का मूल रूप धातु कहलाता है। जैसे-लिख, पढ़, जा, खा, गा, रो, पा आदि। इन्हीं धातुओं से लिखता, पढ़ता, आदि क्रियाएँ बनती हैं। क्रिया के भेद- क्रिया के दो भेद हैं- (1) अकर्मक क्रिया। (2) सकर्मक क्रिया। 1. अकर्मक क्रिया जिन क्रियाओं का फल सीधा कर्ता पर ही पड़े वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं होती। अकर्मक क्रियाओं के अन्य उदाहरण हैं- (1) गौरव रोता है। (2) साँप रेंगता है। (3) रेलगाड़ी चलती है। कुछ अकर्मक क्रियाएँ- लजाना, होना, बढ़ना, सोना, खेलना, अकड़ना, डरना, बैठना, हँसना, उगना, जीना, दौड़ना, रोना, ठहरना,

सर्वनाम

सर्वनाम सर्वनाम-संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते है। संज्ञा की पुनरुक्ति को दूर करने के लिए ही सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है। जैसे-मैं, हम, तू, तुम, वह, यह, आप, कौन, कोई, जो आदि। सर्वनाम के भेद- सर्वनाम के छह भेद हैं- 1. पुरुषवाचक सर्वनाम। 2. निश्चयवाचक सर्वनाम। 3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम। 4. संबंधवाचक सर्वनाम। 5. प्रश्नवाचक सर्वनाम। 6. निजवाचक सर्वनाम। 1. पुरुषवाचक सर्वनाम जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता या लेखक स्वयं अपने लिए अथवा श्रोता या पाठक के लिए अथवा किसी अन्य के लिए करता है वह पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाता है। पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं- (1) उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला अपने लिए करे, उसे उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-मैं, हम, मुझे, हमारा आदि। (2) मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला सुनने वाले के लिए करे, उसे मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-तू, तुम,तुझे, तुम्हारा आदि। (3) अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला सुनने वाले के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के ल

संज्ञा के विकारक तत्व

संज्ञा के विकारक तत्व जिन तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) का रूपांतर होता है वे विकारक तत्व कहलाते हैं। वाक्य में शब्दों की स्थिति के आधार पर ही उनमें विकार आते हैं। यह विकार लिंग, वचन और कारक के कारण ही होता है। जैसे-लड़का शब्द के चारों रूप- 1.लड़का, 2.लड़के, 3.लड़कों, 4.लड़को-केवल वचन और कारकों के कारण बनते हैं। लिंग- जिस चिह्न से यह बोध होता हो कि अमुक शब्द पुरुष जाति का है अथवा स्त्री जाति का वह लिंग कहलाता है। परिभाषा- शब्द के जिस रूप से किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के पुरुष जाति अथवा स्त्री जाति के होने का ज्ञान हो उसे लिंग कहते हैं। जैसे-लड़का, लड़की, नर, नारी आदि। इनमें ‘लड़का’ और ‘नर’ पुल्लिंग तथा लड़की और ‘नारी’ स्त्रीलिंग हैं। हिन्दी में लिंग के दो भेद हैं- 1. पुल्लिंग। 2. स्त्रीलिंग। 1. पुल्लिंग जिन संज्ञा शब्दों से पुरुष जाति का बोध हो अथवा जो शब्द पुरुष जाति के अंतर्गत माने जाते हैं वे पुल्लिंग हैं। जैसे-कुत्ता, लड़का, पेड़, सिंह, बैल, घर आदि। 2. स्त्रीलिंग जिन संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का बोध हो अथवा जो शब्द स्त्री जाति के अंतर्गत माने जाते

पद-विचार- संज्ञा

पद-विचार सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है, पर जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह स्वतंत्र नहीं रहता बल्कि व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और प्रायः इसका रूप भी बदल जाता है। जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे शब्द न कहकर पद कहा जाता है। हिन्दी में पद पाँच प्रकार के होते हैं- 1. संज्ञा 2. सर्वनाम 3. विशेषण 4. क्रिया 5. अव्यय 1. संज्ञा किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु आदि तथा नाम के गुण, धर्म, स्वभाव का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते हैं। जैसे-श्याम, आम, मिठास, हाथी आदि। संज्ञा के प्रकार- संज्ञा के तीन भेद हैं- 1. व्यक्तिवाचक संज्ञा। 2. जातिवाचक संज्ञा। 3. भाववाचक संज्ञा। 1. व्यक्तिवाचक संज्ञा जिस संज्ञा शब्द से किसी विशेष, व्यक्ति, प्राणी, वस्तु अथवा स्थान का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-जयप्रकाश नारायण, श्रीकृष्ण, रामायण, ताजमहल, कुतुबमीनार, लालकिला हिमालय आदि। 2. जातिवाचक संज्ञा जिस संज्ञा शब्द से उसकी संपूर्ण जाति का बोध हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मनुष्य, नदी, नगर, पर्वत, पशु, पक्षी, लड़का, कुत्ता, गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी, नारी,

शब्द-विचार

शब्द-विचार परिभाषा- एक या अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि शब्द कहलाता है। जैसे- एक वर्ण से निर्मित शब्द-न (नहीं) व (और) अनेक वर्णों से निर्मित शब्द-कुत्ता, शेर,कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा। शब्द-भेद व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द-भेद- व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद हैं- 1. रूढ़ 2. यौगिक 3. योगरूढ़ 1. रूढ़ जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हों तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर। इनमें क, ल, प, र का टुकड़े करने पर कुछ अर्थ नहीं हैं। अतः ये निरर्थक हैं। 2. यौगिक जो शब्द कई सार्थक शब्दों के मेल से बने हों,वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे-देवालय=देव+आलय, राजपुरुष=राज+पुरुष, हिमालय=हिम+आलय, देवदूत=देव+दूत आदि। ये सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं। 3. योगरूढ़ वे शब्द, जो यौगिक तो हैं, किन्तु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। जैसे-पंकज, दशानन आदि। पंकज=पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ

वर्ण-विचार, वर्णमाला

वर्ण-विचार परिभाषा-हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि। वर्णमाला वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं- 1. स्वर 2. व्यंजन स्वर जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं- 1. ह्रस्व स्वर। 2. दीर्घ स्वर। 3. प्लुत स्वर। 1. ह्रस्व स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं। 2. दीर्घ स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है

भाषा, व्याकरण और बोली

1.भाषा, व्याकरण और बोली परिभाषा- भाषा अभिव्यक्ति का एक ऐसा समर्थ साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार जाना सकता है। संसार में अनेक भाषाएँ हैं। जैसे-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी, बँगला,गुजराती,पंजाबी,उर्दू, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि। भाषा के प्रकार- भाषा दो प्रकार की होती है- 1. मौखिक भाषा। 2. लिखित भाषा। आमने-सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं अथवा कोई व्यक्ति भाषण आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तो उसे भाषा का मौखिक रूप कहते हैं। जब व्यक्ति किसी दूर बैठे व्यक्ति को पत्र द्वारा अथवा पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में लेख द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तब उसे भाषा का लिखित रूप कहते हैं। व्याकरण मनुष्य मौखिक एवं लिखित भाषा में अपने विचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है किन्तु इससे भाषा का कोई निश्चित एवं शुद्ध स्वरूप स्थिर नहीं हो सकता। भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं। परिभाषा- व्याकरण वह शास्त्र है

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प्रिय पाठकगण , हिंदी सीखें - मेरा यह ब्लॉग राष्ट्रभाषा हिंदी को समर्पित एक तुच्छ प्रयास है , हिंदी भाषा के प्रति कोई भी जिज्ञासा होने  पर  उसका  समाधान  इस  ब्लॉग के माध्यम से हो सके यही प्रयास है . आपके सुझावों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है . धन्यवाद     

अशुद्ध वाक्यों के शुद्ध वाक्य

अशुद्ध वाक्यों के शुद्ध वाक्य (1) वचन-संबंधी अशुद्धियाँ अशुद्ध शुद्ध 1. पाकिस्तान ने गोले और तोपों से आक्रमण किया। पाकिस्तान ने गोलों और तोपों से आक्रमण किया। 2. उसने अनेकों ग्रंथ लिखे। उसने अनेक ग्रंथ लिखे। 3. महाभारत अठारह दिनों तक चलता रहा। महाभारत अठारह दिन तक चलता रहा। 4. तेरी बात सुनते-सुनते कान पक गए। तेरी बातें सुनते-सुनते कान पक गए। 5. पेड़ों पर तोता बैठा है। पेड़ पर तोता बैठा है। (2) लिंग संबंधी अशुद्धियाँ- अशुद्ध शुद्ध 1. उसने संतोष का साँस ली। उसने संतोष की साँस ली। 2. सविता ने जोर से हँस दिया। सविता जोर से हँस दी। 3. मुझे बहुत आनंद आती है। मुझे बहुत आनंद आता है। 4. वह धीमी स्वर में बोला। वह धीमे स्वर में बोला। 5. राम और सीता वन को गई। राम और सीता वन को गए। (3) विभक्ति-संबंधी अशुद्धियाँ- अशुद्ध शुद्ध 1. मैं यह काम नहीं किया हूँ। मैंने यह काम नहीं किया है। 2. मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ। मैं पुस्तक पढ़ता हूँ। 3. हमने इस विषय को विचार किया। हमने इस विषय पर विचार किया 4. आठ बजने को दस मिनट है। आठ बजने में दस मिनट है। 5. वह देर में सोकर उठता है। वह देर से सोकर उठ